-: 23 जून 1945 :-
वावेल
प्रस्ताव को अस्वीकार करो-
आजाद हिंद की अस्थायी सरकार, सिंगापुर रेडियो से प्रसारण
“भारत में मेरी बहनों और भाइयों! कल मैंने आपसे
कहा था कि किसी भी दशा में ‘काँग्रेस वर्किंग कमिटी’ को ‘ऑल इण्डिया काँग्रेस
कमिटी’ या ‘काँग्रेस’ की ओर से फैसले नहीं लेने चाहिए। वर्किंग कमिटी एक विशिष्ट निकाय है। इसके द्वारा महत्वपूर्ण फैसले करना इसकी शक्तियों का उल्लंघन
है, काँग्रेस के संविधान के अनुसार गलत है और नैतिक रुप से अनुचित है। इसी में
मुझे जोड़ना चाहिए था- वर्किंग कमिटी द्वारा ऐसा करना न तो बुद्धिमानी है, न ही
राजनीतिक। बाहर से एक पर्यवेक्षक के नजरिये से देखने पर लगता है कि वर्किंग कमिटी
एक अशोभनीय जल्दीबाजी का प्रदर्शन कर रही है। मैं यह कहने के लिए मजबूर हूँ कि
महात्मा गाँधी तथा वर्किंग कमिटी के मुकाबले श्री जिन्ना ने बुद्धिमानी एवं
सावधानी भरा कदम उठाया है। मेरे सामने जो रपट है, उसके अनुसार, उन्होंने घोषणा की
है कि वे मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों को तब तक शिमला सम्मेलन में शामिल होने की
सलाह नहीं दे सकते, जब तक कि 24 तारीख को लॉर्ड वावेल के साथ उनका साक्षात्कार
नहीं हो जाता। अब श्री जिन्ना के दिल में मकसद चाहे जो हो, उन्होंने लॉर्ड वावेल
द्वारा दिये गये प्रस्ताव को लपकने की हड़बड़ी नहीं दिखायी है। सम्मेलन को आगे बढ़ाने
के लिए कहकर श्री जिन्ना ने एक और समझदारी एवं सावधानी भरा कदम उठाया है।
“मुझे लगता है कि काँग्रेस वर्किंग कमिटी ने भी
शिमला सम्मेलन की तारीख को आगे बढ़ाने के लिए दवाब डाला होता, तो लॉर्ड वावेल मजबूर
हो जाते। हालाँकि यह एक
अच्छी बात है कि काँग्रेस वर्किंग कमिटी ने अन्तिम निर्णय लेने के लिए शिमला
सम्मेलन से पहले तथा सम्मेलन के दौरान बैठकें आयोजित करने का फैसला लिया है। अगर
वर्किंग कमिटी के कुछ सदस्य महात्मा गाँधी और अन्यान्य प्रतिनिधियों को जरूरी सलाह
देने के उद्देश्य से पहले ही शिमला पहुँचकर वहाँ मौजूद रहते, तो यह एक और नासमझी
भरा कदम होता। अगर ऐसा किया गया होता, तो इससे यही जाहिर होता कि वर्किंग कमिटी
लॉर्ड वावेल के प्रस्ताव को हथियाने के लिए कुछ ज्यादा ही तत्पर है। अब जबकि
थोड़ा-सा समय मिल गया है, मैं आशा करता हूँ कि काँग्रेस की ओर से अन्तिम फैसला लेने
से पहले ऑल इण्डिया काँग्रेस कमिटी का एक सम्मेलन बुलाया जायेगा। सिर्फ वर्किंग
कमिटी के फैसले पर लॉर्ड वावेल के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए,
क्योंकि ऑल इण्डिया काँग्रेस कमिटी के बहुत-से नेता अभी जेलों में बन्द हैं। अगर
महात्मा गाँधी तथा वर्किंग कमिटी इस बात पर जोर डालते हैं, तो वायसराय को उन्हें
रिहा करने का आदेश जारी करना पड़ेगा। अगर वायसराय ऑल इण्डिया काँग्रेस कमिटी के
सदस्यों को रिहा करने से मना कर देते हैं, तो उनकी नेकनीयती पर प्रश्नचिह्न लग
जाता है।
“लॉर्ड वावेल के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए
जब मैं ऑल इण्डिया काँग्रेस कमिटी बुलाने की माँग कर रहा हूँ, तो मेरा मतलब यह कतई
नहीं है कि- वर्तमान में जिस ढंग से यह संस्था संगठित है, उस हिसाब से- यह संस्था
हमारी राष्ट्रीय भावना की एकमात्र संरक्षक है! ऑल इण्डिया काँग्रेस कमिटी के जिन
सदस्यों ने ब्रिटेन के साथ समझौता करने के वर्किंग कमिटी के फैसले विरोध किया है,
उनके प्रति काँग्रेस की सर्वोच्च कार्यकारिणी ने हाल में जो व्यवहार किया है, उससे
ऑल इण्डिया काँग्रेस कमिटी ने अपने ‘प्रतिनिधि’ वाले चरित्र को कुछ हद तक खो दिया
है। जो दिग्गज ब्रिटिश साम्राज्यवाद
के खिलाफ संघर्ष जारी रखना चाहते थे, उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करना
काँग्रेस हाई कमान के लिए क्या हास्यास्पद तथा बदनामी भरा कदम नहीं था? जबकि दूसरी तरफ, सी.
राजगोपालाचारी-जैसे काँग्रेसियों को बिना दण्ड दिये छोड़ गया, जो जनता के बीच जाकर
ब्रिटिश सरकार के साथ बिना शर्त सहयोग करने की नीति की लगातार वकालत किये जा रहे
हैं! जिन भूलाभाई देसाई ने पिछले नागरिक अवज्ञा आन्दोलन में अपनी भूमिका नहीं
निभाई, उन्हें सेण्ट्रल असेम्बली में काँग्रेस का नेता बनाना क्या अनुचित और
मूर्खतापूर्ण नहीं था? खैर, इन बातों को रहने दिया जाय। ऑल इण्डिया काँग्रेस कमिटी
में भी मतभेद हैं, फिर भी, अगर मैं यह चाहता हूँ कि वर्किंग कमिटी के स्थान पर ऑल
इण्डिया काँग्रेस कमिटी इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर फैसला ले, तो ऐसा इसलिए है कि यह
सांवैधानिक रुप से सही और उचित रहेगा। यह मुद्दा काँग्रेस के आधारभूत सिद्धान्तों
एवं संकल्पों को प्रभावित करता है- खासतौर पर काँग्रेस के ‘सम्पूर्ण आजादी’ के
उद्देश्य को; और अतः यह न्यायोचित होगा कि जनता के प्रत्यक्ष प्रतिनिधि इसपर फैसला
लें।
“मैं पहले ही कह चुका हूँ कि अगर महात्मा गाँधी
अतिरिक्त सावधानी नहीं बरतते हैं, तो वायसराय और श्री जिन्ना बड़ी चतुराई से उन्हें
एक ऐसी स्थिति में डाल देंगे, जहाँ काँग्रेस को एक्जीक्यूटिव काउन्सिल में सिर्फ
उन्हीं सीटों के लिए नामांकन दाखिल करना पड़ेगा, जिन्हें वायसराय ने ‘हिन्दू जाति’
के लिए आरक्षित रख छोड़ा है।
दूसरे शब्दों में, इस बात का खतरा बहुत ज्यादा है कि महात्मा गाँधी को चतुराई से
ऐसी स्थिति में डाल दिया जायेगा, जहाँ जल्दीबाजी में वे यह स्वीकार कर लेंगे कि
‘काँग्रेस’ शब्द ‘हिन्दू जाति’ का पर्यायवाची है। यह भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की
राजनीतिक मृत्यु होगी, जिससे उबर पाना काँग्रेस के लिए असम्भव होगा।
“इस खतरे को टाला जा
सकता है, अगर शिमला सम्मेलन में काँग्रेस-प्रतिनिधिगण कमाण्डर-इन-चीफ को छोड़कर सभी
सीटों के लिए नामों का एक पैनल सौंप दें। क्या काँग्रेस-प्रतिनिधि ऐसा करेंगे?
मुझे खुशी है कि वर्किंग कमिटी इस दिशा में सोच रही है। मगर सोचना काफी नहीं है।
काँग्रेस-प्रतिनिधियों को वायसराय पर एक्जीक्यूटिव काउन्सिल के गठन के लिए धार्मिक
एवं साम्प्रदायिक आधार को त्यागने और इसके स्थान पर राजनीतिक एवं राष्ट्रीय आधार
को अपनाने के लिए दवाब बनाना पड़ेगा। हमें अपने सामने खड़ी मुश्किलों को भूलना नहीं
चाहिए। मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि शान्ति सम्मेलन या राजनीतिक गोलमेज
सम्मेलनों में सिर्फ युद्धरत पक्षों को ही भाग लेने का अधिकार होता है। आज अगर
दूरगामी बदलावों की सीढ़ी के रुप में अँग्रेज कार्यकारी परिषद के आंशिक भारतीयकरण
के लिए राजी हुए हैं, तो ऐसा श्री जिन्ना या मुस्लिम लीग के कारण नहीं, बल्कि
काँग्रेस के कारण हुआ है, जो अपनी सारी ताकत लगाकर ब्रिटिश सरकार के साथ संघर्ष
करती आ रही है!
“1931 के गोलमेज
सम्मेलन के समय मैंने स्पष्ट किया था कि सिर्फ काँग्रेस और काँग्रेस के साथ कन्धा
मिलाकर संघर्ष करने वाले ही लन्दन में होने वाले इस सम्मेलन में भाग लेने के हकदार
हैं। उस वक्त मैंने देशवासियों को याद दिलाया था कि जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री
मिस्टर लॉयड जॉर्ज ने आयरलैण्ड में सिन-फेन पार्टी को छकाते हुए राष्ट्रीय सम्मेलन
में सभी आयरिश पार्टियों को आमंत्रित करना चाहा था, तब सिन-फेन पार्टी ने इस
सम्मेलन में भाग लेने से मना कर दिया था, क्योंकि उनके अनुसार ऐसा सम्मेलन
आयरलैण्ड का प्रतिनिधित्व नहीं करता। सिन-फेन पार्टी ने अपना संघर्ष जारी रखा और
अन्ततः वह दिन आया, जब अँग्रेजों को सिर्फ सिन-फेन पार्टी के साथ गोलमेज सम्मेलन
करने के लिए बाध्य होना पड़ा। हमारे मामले में, हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि
जिसने ब्रिटिश सरकार के साथ लड़ाई लड़ी है, सिर्फ उन्हें ही हक है ब्रिटिश
प्रतिनिधियों के साथ गोलमेज सम्मेलन में भारत की ओर से बोलने तथा भारत का
प्रतिनिधित्व करने का। आखिर मुस्लिम लीग का जो भी महत्व है, वह मोटे तौर पर इसलिए
है कि उसे ब्रिटिश का समर्थन प्राप्त है। मुस्लिम लीग को बेवजह महत्व देकर
काँग्रेस जमीयत-उल-उलेमा, मजलिस-ए-अहरार, खुदाई-खिदमतगार, आजाद मुस्लिम लीग, शिया
कॉन्फ्रेन्स, प्रजा पार्टी, ऑल इण्डिया मोमिन पार्टी इत्यादि राष्ट्रवादी संगठनों
के साथ और साथ ही, कौम की आजादी के लिए भारी बलिदान करने वाले भारतीय राष्ट्रीय
काँग्रेस में मुस्लिमों के बड़े एवं प्रभावशाली तबके के साथ धोखा कर रही है।
“भारत से आनेवाली खबरों से ऐसा जाहिर होता है कि
विभिन्न मंचों से लॉर्ड वावेल के प्रस्ताव का विरोध हो रहा है। दुर्भाग्यवश, यह विरोध संगठित नहीं हो पा रहा है। 1940 में
ऐसा ही खतरा पैदा हुआ था, जब काँग्रेस ब्रिटिश साम्राज्यवाद के साथ समझौता करने के
की दिशा में अग्रसर हो रही थी, तब देश के सार्वजनिक जीवन के तमाम कट्टरपन्थी
तत्वों को एकत्रित करते हुए हमने रामगढ़ में ‘अखिल भारतीय समझौता-विरोधी सम्मेलन’
बुलाया था। ऐसा ही एक सम्मेलन फिर होना चाहिए- वह भी बिना किसी देरी के! अभी अगर
एक अखिल भारतीय वावेल-विरोधी सम्मेलन आयोजित हो जाता है, तो यह लॉर्ड वावेल के
प्रस्ताव के विरोध में संघर्ष खड़ा करने, संगठित होने तथा एक साझा मंच तैयार करने
की दिशा में काफी लाभदायक होगा। इस सम्मेलन के तहत किसी एक खास दिन देशभर में
बैठकें की जानी चाहिए और लॉर्ड वावेल के प्रस्ताव के बारे में भारत की वास्तविक
राय को व्यक्त करते हुए प्रस्ताव पारित किये जाने चाहिए। अगर 5 जुलाई को-
इंग्लैण्ड में आम चुनाव वाले दिन- इस ‘अखिल भारतीय वावेल-विरोधी दिवस’ को मनाया
जाता है, तो यह एक अच्छा विचार रहेगा।
“यहाँ पूर्वी एशिया
में हम 4 जुलाई को एक उत्सव मनाने जा रहे हैं। सारी दुनिया में 4 जुलाई को अमेरीकी
स्वतंत्रता दिवस के रुप में मनाया जाता है। पूर्वी एशिया में इसी दिन ‘इण्डियन
इण्डिपेण्डेन्स लीग’ ने नयी रोशनी के साथ खुद को आत्मसात् किया था और अपने जीवन
में नये चरण की शुरुआत की थी। सारे पूर्वी एशिया में जहाँ कहीं भी भारतीय हैं, 4
जुलाई को जनमत-सर्वेक्षण के रुप में मनाया जायेगा। हम पूर्वी एशिया के सभी
भारतीयों को उस दिन लॉर्ड वावेल के प्रस्ताव पर अपनी राय देने के लिए अपील करेंगे;
और अगर वे प्रस्ताव को खारिज करते हैं, तो हम हर हाल में भारत की आजादी के लिए
सशस्त्र संघर्ष को जारी रखने के अपने निश्चय पर फिर से कायम हो जायेंगे- चाहे
काँग्रेस वर्किंग कमिटी लॉर्ड वावेल के प्रस्ताव को स्वीकार ही क्यों न कर ले!
“घर में मेरी बहनों और
भाईयों! आज के लिए बस इतना ही। सोमवार 25 तारीख को मैं भारत के क्रान्तिकारियों को
विशेष रुप से सम्बोधित करना चाहूँगा कि अगर काँग्रेस वर्किंग कमिटी लॉर्ड वावेल के
प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है, तो उन्हें क्या करना है। वायसराय आते रहेंगे और
जाते रहेंगे, मगर भारत बना रहेगा; और स्वतंत्रता के लिए भारत का संघर्ष अन्ततः सफल
होकर रहेगा!
“जय हिन्द!”
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें