"हमारी मातृभूमि आजादी माँग रही है।
अब वह आजादी के बिना और नहीं रह सकती। मगर आजादी अपनी वेदी पर बलिदान माँग रही है।
आजादी बड़ी मात्रा में आपकी ताकत, आपकी सम्पत्ति, आपके पास जो कुछ भी कीमती है, हर
वो चीज माँग रही है। बीते दिनों के क्रान्तिकारियों की तरह आपको भी अपना सुख, अपना
चैन, अपनी खुशियाँ, अपनी धन-सम्पत्ति का बलिदान देना होगा। आपने अपने बच्चों को
युद्धभूमि में भेजा है सैनिक बनाकर। मगर स्वतंत्रता की देवी अब भी प्रसन्न नहीं
हुई है। मैं आपको उसे प्रसन्न करने का राज बताता हूँ। आज वह फौज के लिए सिर्फ योद्धा और सैनिक नहीं माँग रही है। आज
उसे चाहिए विद्रोही- विद्रोही पुरुष, विद्रोही महिला- जो हरावल दस्ते में शामिल
होने के लिए तैयार हों- जिनके लिए मौत निश्चित है- ऐसे विद्रोही जो अपने शरीर से
बहते खून में दुश्मन को डुबोने के लिए तैयार हों।
"तुम
हमको खून दो
मैं
तुमको आजादी दूँगा।
आप
मुझे अपना खून दीजिये, मैं आपको आजादी दूँगा- यही आजादी की माँग है।"
(श्रोताओं
की तरफ से तुरन्त आवाजें आती हैं, "हम तैयार हैं। हम देंगे अपना खून- अभी
लीजिये।")
नेताजी
जारी रखते हैं: "मेरी बात सुनिये। मुझे भावुकता से भरा समर्थन नहीं चाहिए। मुझे
चाहिए वे बागी लोग, जो आगे बढ़कर आत्मघाती दस्ते के इस शपथपत्र पर हस्ताक्षर करें-
आजादी की देवी की बलिवेदी पर मृत्यु से साक्षात्कार का दस्तावेज है यह शपथपत्र।"
"हम
हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हैं।" हॉल के प्रत्येक कोने से जवाब आता है।
"लेकिन
मृत्यु से साक्षात्कार के लिए हस्ताक्षर आप सामान्य स्याही से नहीं कर सकते। आपको
अपने खून से लिखना होगा। जिसमें हिम्मत है, वो आगे बढ़े। हमारी मातृभूमि की आजादी
के लिए आपके रक्तरंजित मुहर को देखने के लिए मैं खड़ा हूँ यहाँ।"
***
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें