मंगलवार, 26 जून 2012

25 जून 1945 / ब्रिटेन की बर्मा नीति / सिंगापुर से प्रसारण


(बता दिया जाय कि जापानी सेना द्वारा बर्मा से अँग्रेजों को मार-भगाने के बाद स्वतंत्र बर्मा में बा-माव के नेतृत्व में सरकार बनी थी और इम्फाल-कोहिमा युद्ध के दौरान बर्मा नेशनल आर्मी ने जापानी सेना एवं नेताजी  की आजाद हिन्द फौज का साथ दिया था, मगर युद्ध के दौरान ही आंग-सान के नेतृत्व में यह बर्मी आर्मी पाला बदलकर ब्रिटिश एवं संयुक्त सेनाओं के पक्ष में चली गयी थी. तब इन सैनिकों ने नेताजी की सेना पर ही हमले किये थे!)  

-:25 जून 1945:- 

ब्रिटेन की बर्मा नीति / सिंगापुर से प्रसारण


"बर्मा के लोगों के क्रमिक मोहभंग का पहला चरण पूरा हुआ अपनी नयी हासिल की हुई  आजादी को खोने के एवज में,  बर्मी लोगों को एक नये विधेयक का तोहफा पेश किया जा रहा है, जो अभी ब्रिटिश संसद में लम्बित है। भविष्य में स्वशासन का एक अस्पष्ट वादा इस विधेयक के साथ जुड़ा है। फिलहाल के लिए बर्मा को एक कार्यकारी परिषद मिलेगी, जो बर्मी लोगों या उनके विधायिका के प्रति नहीं, बल्कि स्वयं गवर्नर के प्रति उत्तरदायी होगी। कार्यकारी परिषद में कुछ अधिकारियों, कुछ गैर-अधिकारियों तथा कुछ अँग्रेजों को जगह दी जायेगी। वाद-विवाद करने वालों का एक समूह विधायिका का रुप लेगा, जिसका गवर्नर पर, या उसकी कार्यकारी परिषद पर कोई नियंत्रण नहीं होगा और जो बातें करना पसन्द करने वालों के लिए मनोरंजन प्रदान करेगा।
"यदि अँग्रेज यह सोचते हैं कि बर्मा के लोगों को, जिन्होंने आजादी के स्वाद को- थोड़े समय के लिए ही सही- चख लिया है, ऐसी धोखेबाजियों से मूर्ख बना सकते हैं, तो फिर मैं तो यही कहूँगा कि जब से अँग्रेजों को पूर्वी-एशिया से खदेड़ा गया है, तब से उनलोगों ने कुछ नहीं सीखा है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि जिस मोहभंग ने बर्मी लोगों को अपने आगोश में लेना शुरु कर दिया है, वह तब पूर्ण हो जायेगा, जब वे अनुभव करेंगे कि अँग्रेजों का स्वशासन का वादा- आजादी का नहीं- पहले किये गये इस तरह के वादों के सिवा और कुछ नहीं है। मेरे मन में जरा भी सन्देह नहीं है कि जब यह मोहभंग अन्त में बर्मी लोगों को पूरी तरह से अपने आगोश में ले लेगा, तब वे ब्रिटिश शासकों के खिलाफ उन हथियारों को लेकर फिर से उठ खड़े होंगे, जिन्हें आजादी का आनन्द लेते वक्त उन्होंने सुरक्षित रख दिया था।   
"इस सम्बन्ध में यह जानना रोचक होगा कि बर्मा की एक राष्ट्रीय सेना के बारे में किसी भी प्रकार का जिक्र नहीं किया गया है। आजाद बर्मा के पास- छोटी ही सही- अपनी एक सेना थी। मगर अँग्रेज-मुक्तिदाताओं की इस सुसभ्य योजना के तहत बर्मी लोगों की अपनी कोई सेना नहीं होगी। अगर अँग्रेजों को लगता है कि बर्मी लोगों का ध्यान इस तरफ नहीं जायेगा, तो फिर वे ख्याली पुलाव पका रहे हैं। बर्मी लोगों के मोहभंग को ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों का वह अन्तरिम आदेश और बढ़ावा दे रहा है, जिसके तहत बिना किसी क्षतिपूर्ति की व्यवस्था किये प्रचलित बर्मी मुद्रा को लगभग समाप्त कर दिया गया है। यह सब जानते हैं कि दुनिया के किसी भी देश में जब सरकार बदलती है, तो समान मूल्य वाली एक नयी मुद्रा अदला-बदली के लिए तैयार किये जाने तक, वह नयी सरकार पहले से प्रचलित मुद्रा को ही कुछ समय के लिए स्वीकार करती है। एक प्रकार से मुझे खुशी है कि ब्रिटिश अधिकारियों ने प्रचलित मुद्रा को निरस्त करने वाला यह आदेश जारी किया, क्योंकि इससे बर्मी लोगों को जिस भीषण आर्थिक बदहाली से गुजरना होगा, वह उनके असन्तोष एवं आक्रोश को भड़काने में किसी भी और के मुकाबले ज्यादा मददगर साबित होगी।     
"बर्मा के राज्य सचिव श्री एमेरि और प्रधानमंत्री चर्चिल के ये प्रस्ताव वाकई निम्नतम दर्जे का आदेश है। मैं आशा करूँगा कि वे और भी ऐसी भयंकर गलतियाँ करें, ताकि बर्मा में जो एक क्रान्ति होनी है, वह और भी पहले हो जाय! जो विधेयक अभी ब्रिटिश संसद में है, वह राजनीतिक रुप से बर्मा को पीछे 1909 की स्थिति में ले जायेगा, और आर्थिक रुप से ब्रिटेन ने बर्मा को 'यथापूर्व स्थिति' का भरोसा दिलाया है; अर्थात् 'बर्मा ऑयल कम्पनी', 'बर्मा कॉर्पोरेशन' तथा अन्यान्य बहुत-सी ब्रिटिश कम्पनियों द्वारा बर्मा का शोषण! बर्मी लोग विश्वयुद्ध से पहले की आर्थिक स्थितियों को स्वीकार लेंगे- ऐसा वही मान सकता है, जिसका दिमाग घास चरने चला गया हो।
"लन्दन से मिली खबरों के अनुसार, गठबन्धन वाले मंत्रीमण्डल द्वारा पेश किये गये इस प्रस्ताव को अगले ही दिन लेबर पार्टी ने अपना समर्थन दे दिया है। यह एक और सबूत है- अगर किसी सबूत की जरुरत है तो- कि भारत और बर्मा-जैसे गुलाम देशों के मामले में कंजर्वेटिव पार्टी व लेबर पार्टी की नीतियों में कोई मतभेद नहीं रह जाता है। जो भारतीय अभी तक यह मानकर चल रहे हैं कि लेबर पार्टी के सत्ता में आने के बाद भारत को कुछ फायदा मिलेगा, उन्हें बर्मा के अनुभव से एक सीख ले लेनी चाहिए। जहाँ तक मेरी बात है, मैं तो यही चाहूँगा कि कंजर्वेटिव पार्टी ही वापस सत्ता में आये, ताकि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के बन्धनों के तहत गुलामी की जितनी भी जंजीरें हैं, उन सबको एक बार में तोड़ डालने के लिए भारत की जनता खुली बगावत कर दे!"

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