सोमवार, 11 जून 2012

16 अगस्त 1945 / पूर्वी एशिया के भरतीयों के नाम सन्देश



-:16 अगस्त 1945:- 

पूर्वी एशिया के भरतीयों के नाम सन्देश


      "भाईयों और बहनों! आजादी की लड़ाई के इतिहास का एक सुनहरा अध्याय बन्द होने जा रहा है, और इस अध्याय में पूर्वी एशिया में रह रहे भारत के बेटे और बेटियों का स्थान अमर रहेगा।
      "आप सबने भारत की आजादी के संघर्ष में मानव शक्ति, रुपये-पैसे और साजो-सामान झोंककर देशभक्ति तथा आत्म-बलिदान का एक ज्वलन्त उदाहरण प्रस्तुत किया है। आप सबने मेरे 'सम्पूर्ण लामबन्दी' के आह्वान के प्रत्युत्तर में जिस स्वेच्छा एवं उत्साह का प्रदर्शन किया है, उसे मैं कभी नहीं भूलूँगा। आपने 'आजाद हिन्द फौज' तथा 'झाँसी की रानी रेजीमेण्ट' के शिविरों में प्रशिक्षण पाने के लिए अपने बेटे और बेटियों को भेजने का एक अनवरत सिलसिला जारी रखा। 'आजाद हिन्द की अन्तरिम सरकार' के युद्ध-खजाने में आपने हाथ खोलकर रुपये तथा धन डाले। संक्षेप में, आपने भारत के सच्चे बेटे एवं बेटियों का कर्तव्य निभाया।
      "मुझे आपलोगों से कहीं ज्यादा अफसोस है कि आपकी इन तकलीफों तथा बलिदानों का हाथों-हाथ कोई फल नहीं मिला। मगर ये बेकार नहीं गये हैं, क्योंकि इन्होंने मातृभूमि की मुक्ति को सुनिश्चित किया है और सारी दुनिया के भारतीयों को ये सदा प्रेरणा देते रहेंगे। भारत की आजादी की वेदी पर आपके इन चढ़ावों तथा आपकी अदम्य वीरता को आने वाली नस्लें सराहेंगी और आपके नाम का जिक्र गर्व के साथ करेंगी।
      "हमारे इतिहास की इस अनचाही विपत्ती की घड़ी में मैं एक ही बात कहना चाहूँगा- हमारी इस सामयिक विफलता पर निराश न हों। खुश रहें और अपने जोश को बनाये रखें। सबसे बड़ी बात- एक पल के लिए भी भारत की नियति को लेकर विचलित न हों। दुनिया में ऐसी कोई ताकत नहीं है, जो भारत को गुलाम बनाये रख सके। भारत को आजाद होना ही है, और वह भी बहुत जल्द!
      "जय हिन्द!"    

1 टिप्पणी: